बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar election 2020) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बारे में माना जार रहा है कि वह अपने दम पर ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सहयोगी जनता दल यूनाइडेट (JD-U) से ज्यादा सीटे जीत लेगी. गठबंधन में एक ओर जहां जदयू 115 सीटों पर इलेक्शन लड़ रही है तो वहीं भाजपा 110 पर मैदान में है. बिहार में भाजपा के इस राजनीतिक बदलाव की वजह को वीआईपी पार्टी के मतदाताओं के साथ आने को माना जा रहा है.
दरभंगा के मुकेश साहनी (Mukesh Sahani) की अगुवाई में दो साल पहले गठित हुए राजनीतिक दल- वीआईपी के साथ भाजपा का गठबंधन है. साहनी खुद राजनीति में साल 2013 से है. मल्लाह जाति की अगुवाई करने वाले साहनी, आधिकारिक तौर पर खुद को 'मल्लाह का बेटा' का बेटा कहते हैं. वीआईपी उत्तर बिहार में नाविकों और मछुआरों के समूह के मतों में बड़ी हिस्सेदारी का दावा करती है.
हालांकि अभी तक बिहार में निषाद मतदाताओं का कोई अनुमानित आंकड़ा नहीं है. इस समुदाय की कई और सहजातियां हैं. वहीं वीआईपी का दावा है कि समूह का कुल मत में 10 फीसदी हिस्सा है जबकि अन्य पार्टियां इसे 6-7 फीसदी मानती हैं.
अगर हार जीत का अंतर कम होता है तो इस तरह के वोटों का समूह कुछ सीटों पर चुनावों को प्रभावित कर सकता है. निषाद वोटों को मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, खगड़िया, वैशाली और अन्य उत्तर बिहार जिलों में प्रभावशाली माना जाता है. इस बेल्ट में, निषादों का वोट शेयर 6% से अधिक बताया जाता है.
जदयू-राजद के टिकट पर चुने गए थे जेपी निषाद
जेपी आंदोलन के दौर में निषाद मतदाता सामाजिक न्याय के वादों वाले दलों के साथ पारंपरिक रूप से प्रतिबद्ध रहे. दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री कैप्टन जय नारायण प्रसाद निषाद ने भाजपा में जाने से पहले कई बार राजद और जद (यू) के टिकट पर मुजफ्फरपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए. उनके बेटे अजय निषाद ने 2019 के चुनाव में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की.
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में वीआईपी राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन में मुजफ्फरपुर, खगड़िया और मधुबनी से चुनाव लड़ा था. इस बार एनडीए का हिस्सा बन चुके वीआईपी के नेता साहनी खुद लोजपा के महबूब अली कैसर से खगड़िया से 2.5 लाख वोटों के अंतर से हार गए थे. अपने साथ राजद के वोट बैंक के बावजूद, सहानी को केवल 27% वोट मिले थे. लगभग इतने ही वोट राजद को साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मिले थे.
गठबंधन से गठबंधन तक का सफर करते हुए बीजेपी की ओर से साहनी को 11 सीटें मिलना उनकी योग्याता माना जा रहा है. साल 2014 के चुनावों से पहले उन्होंने नरेंद्र मोदी के लिए निषादों की रैली निकाली थी. साल 2015 में भाजपा का 'स्टार प्रचारक' बनने से पहले उन्होंने नीतीश के साथ बातचीत की. जब भाजपा चुनाव हार गई, तो साहानी फिर से पलट गए और साल 2019 में राजद से हाथ मिला लिया. इस चुनाव में राजद द्वारा 30 सीटों की मांग खारिज किए जाने के बाद वह फिर से बीजेपी के साथ हो लिए.
वीआईपी हमारी महत्वपूर्ण सहयोगी- BJP
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार भाजपा के बिहार प्रभारी देवेंद्र फड़नवीस के करीबी एक सूत्र ने कहा- 'हम वीआईपी को एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में देख रहे हैं. ना केवल मल्लाह के बीच बल्कि कुछ अन्य अत्यंत पिछड़े वर्गों के बीच भी इसका काफी प्रभाव है. उत्तर बिहार के ग्रामीण इलाकों में मल्लाह एक मुखर जाति के रूप में देखे जाते हैं. राजनीतिक रूप से अप्रमाणित समुदाय खुद को मल्लाह नेता के साथ जोड़ सकते हैं.'
सूत्रों का कहना है कि बीजेपी का वीआईपी के साथ गठबंधन एक राजनीतिक संदेश भेजने और बिहार में अपने सामाजिक आधार का विस्तार करना है. राज्य में भाजपा पारंपरिक रूप से उच्च जाति के राजनीतिक दल के रूप में जानी जाती है. अमित शाह के अगुवाई में, पार्टी ईबीसी में पैठ बना कर सामाजिक आधार का विस्तार करने की कोशिश कर रही है.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी ने वीआईपी के साथ सीट बंटवारे की घोषणा करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'भाजपा ने हमेशा अति पिछड़े वर्ग के लोगों का सम्मान किया है. एनडीए सरकार पंचायत चुनावों में ईबीसी में 20% आरक्षण का प्रावधान लाई थी और आज बिहार में 1,600 से अधिक मुखिया लोग इन वर्गों से हैं.'