अब किसान अपनी पारंपरिक खेती को छोड़कर अन्य चीजों को भी अपने खेत में स्थान दे रहे हैं. किसान अब अपनी सुविधा के अनुसार खेती का चयन कर रहे हैं. उसी के मिसाल हैं मोतिहारी के रितेश पांडे जिन्होंने ने ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरु की है.रितेश बताते हैं कि ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती है. सिंचाई और खाद डालने का टेंशन भी नहीं होता है.आज की तारीख में रितेश ड्रैगन फ्रूट की खेती से कम लागत में सालाना 2 से 3 लाख रुपये कमा रहे हैं.
ड्रैगन फ्रूट की मुख्यता तीन किस्में होती हैं
मोतिहारी के रितेश पांडे ने ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत की और अपनी मेहनत और लगन से उन्होनें कई गुना मुनाफा भी कमाया. आज उनसे प्रभावित होकर ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए दूसरे राज्य से लोग ट्रेनिंग लेने आ रहे हैं. ड्रैगन फ्रूट को कमलम नाम से जाना जाता है. . इस फल की मुख्यता तीन किसमें होती हैं. इस फल की विशेषता यह है की ये डायबिटीज , कैंसर , गठिया , पेच संबंधी समस्या जैसी बीमारियों की अवस्था में काफी लाभकारी माना जाता है.
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कई बिमारियों में होता है प्रयोग
इसका इस्तेमाल रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने में किया जाता है. डेंगू के इलाज में भी इसका प्रयोग किया जाता है. यह एनिमिया की समस्या ,अस्थमा, भूख बढ़ाने ,त्वचा और बालों के लिए भी बहुत उपयोगी माना जाता है. यही वजह है की बाजार में इसकी कीमत अच्छी मिलती है. इसके फल से आइसक्रीम, जेली, जेम, जूस और वाइन भी तैयार की जाती है. ड्रैगन फ्रूट थाईलैंड औक दक्षिण अमेरिका में मिलता है. इस पौधे की खासियत यह है कि एक बार लगने के बाद यह 25 साल तक फलता रहता है.
ड्रैगन फ्रूट एक सीजन में कम से कम तीन बार फल देता है
बिहार के सहरसा, पूर्णिया, सुपौल, खगड़िया, अररिया और नालंदा के किसानों के लिए भी ड्रैगन फ्रूट फायदे का सौदा बन चुका है. बिहार के अलावा तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक जैसे राज्यों में भी बड़ी संख्या में किसान ड्रैगन फ्रूट्स की खेती कर रहें हैं. रितेश बताते हैं की ड्रैगन फ्रूट एक सीजन में कम से कम तीन बार फल देता है . कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती की जाती है. बरसात को छोड़कर आप किसी भी मौसम में इसके पौधे या बीज का रोपण कर सकते हैं. मार्च से जुलाई के बीच में इसके पौधे और बीज लगाने के लिए बेहतर समय होता है.
ड्रैगन फ्रूट एक प्रकार की कैक्टस बेल है
ड्रैगन फ्रूट एक प्रकार की कैक्टस बेल है जिसकी खेती ऊंचे जगहों पर की जाती है. कैक्टस प्रजाति होने की होने की वजह से सिंचाई की कुछ खास जरूरत नहीं पड़ती . रितेश के अनुसार ये पौधा खुद पानी संचय कर लेता है. इसके एक पौधे से आठ से दस फल प्राप्त होता है .एक फल का वजन तीन सौ से पांच सौ ग्राम होता है और ये बाज़ारो में तीन सौ से चार सौ रुपये प्रतिकिलो के हिसाब से बड़े ही आसानी से बिक जाता है .रेतीली दोमट मिट्टी से लेकर साधारण दोमट मिट्टी समेत विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में भी इसकी खेती को अच्छी तरह से किया जाता है.