3 फुट की होने पर उड़ाते थे सब मजाक, IAS अफसर बन आरती ने बोलती की थी बंद; कर चुकी हैं कई बड़े काम



"अगर मन में कुछ कर गुजरने की लगन हो तब कोई भी कठिनाई सामने आए वो जी-तोड़ मेहनत के आगे दम तोड़ देती है। आज बात एक ऐसी महिला IAS की जिनकी हाइट महज 3 फुट 3 इंच है। लंबाई कम होने की वजह से कई बार लोगों ने उनका मजाक भी उड़ाया। आईएएस आरती डोगरा की कहानी निश्चित तौर से प्रेरणा देने वाली है क्योंकि अफसर बनकर उन्होंने मजाक उड़ाने वाले लोगों की बोलती बंद कर दी थी । 2006 बैच की इस आईएएस अफसर का भारत सरकार ने कई बार सम्मान भी किया है। आरती ने श्री राम लेडी कॉलेज, दिल्ली से पढ़ाई-लिखाई की थी। आरती डोगरा ने अपनी कम हाइट को अपनी सफलता के आगे कभी नहीं आने दिया।"


"आरती डोगरा का जन्म उत्तराखंड के देहरादून में हुआ था। उनके पिता राजेंद्र डोगरा इंडियन आर्मी में कर्नल रहे हैं और मां कुमकुम डोगरा स्कूल की प्रिंसिपल हैं। आरती के जन्म के पिता चिकित्सकों ने उनके माता-पिता को बताया था कि आरती की हाइट ज्यादा नहीं बढ़ेगी। इसके बाद आरती के माता-पिता ने उन्हें बेहतरीन पढ़ाई-लिखाई की सुविधाएं मुहैया कराईं। आरती की शुरुआती शिक्षा-दीक्षा उत्तराखंड में हुई। देहरादून के मशहूर Welham Girls School में आरती डोगरा ने पढ़ाई की थी। दिल्ली यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन करने के बाद आरती डोगरा ने यूपीएससी की तैयारी शुरू की थी।"


बताया जाता है कि ग्रेजुएशन के बाद आरती डोगरा आगे की पढ़ाई के लिए देहरादून लौट आईं। यहां उनकी मुलाकात उत्तराखंड की पहली महिला आईएएस अफसर मनीषा पनवार से हुई थी। मनीषा पनवार से मिलने के बाद आरती उनसे काफी प्रभावित हुईं और फिर इसके बाद उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू की।


वर्ष 2006-2007 में आईएएस की ट्रेनिंग के बाद आरती डोगरा को सबसे पहले उदयपुर के एडीएम के तौर पर पोस्टिंग दी गई। इसके बाद ये अलवर व अजमेर के ब्यावर में एसडीएम भी रहीं। बतौर जिला कलेक्टर इन्हें वर्ष 2010 में बूंदी लगाया गया। फिर बीकानेर और अजमेर की जिला कलेक्टर के रूप में भी सेवाएं दी। जोधपुर डिस्कॉम की प्रबंध निदेशक भी रहीं। 1 जनवरी 2019 को मुख्यमंत्री की विशेष सचिव नियुक्त होने से पहले 19 दिसम्बर 2018 से 31 दिसम्बर 2018 तक मुख्यमंत्री की संयुक्त सचिव पद पर रहीं।


बीकानेर में जिला कलेक्टर रहते आरती डोगरा ने ‘बंको बिकाणो’ अभियान की शुरुआत की थी। इसमें लोगों को खुले में शौच ना करने के लिए प्रेरित किया गया। गांव-गांव पक्के शौचालय बनवाए गए, जिसकी मॉनीटरिंग मोबाइल सॉफ्टवेयर के जरिए की जाती थी। यह अभियान 195 ग्राम पंचायतों तक सफलता पूर्वक चलाया गया।




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